भारत की बेटी भारत की शान अंतरिक्ष में जाने वाली पहली भारतीय मूल की महिला कल्पना चावला
जिन्होंने अपने जीवन में 2 बार स्पेस मिशन की उड़ान भरी
पहली उड़ान तो सफल रही थी लेकिन दूसरी बार स्पेस से लौटते समय धरती पर उतरने से कुछ ही मील दूरी पर एक ऐसी घटना घटी जिससे स्पेस शटल के साथ साथ उसमें सवार सभी एस्ट्रोनॉट्स आग के गोले में तब्दील हो गए,
आखिर उस दिन स्पेस शटल के साथ ऐसा क्या हुआ था,
और क्या नासा को इस दुर्घटना की खबर पहले से ही पता था,
और कल्पना चावला की मौत कैसे हुई थी ( Kalpana Chawla ki maut kaise hui )
और उस भयानक दुर्घटना से पहले कैसा था कल्पना चावला के सपनों का इनक्रेडिबल सफर,
तो चलिए आज इन सारी बातो को जानते हैं
कल्पना चावला का जन्म 17 मार्च सन 1962 को
हरियाणा के करनाल में हुआ था, कल्पना अपने चारों भाई बहनों में सबसे छोटी थी,
उन्होंने अपने प्राथमिक शिक्षा टैगोर बाल निकेतन स्कूल से पूरी की थी, साल 1976 में कल्पना ने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में बैचलर की डिग्री कंप्लीट की थी,
सन् 1982 में वो अमेरिका चली गई और वहां जाकर उन्होंने यूनिवर्सिटी आफ टेक्सस से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर की डिग्री प्राप्त की
और इसी दौरान ही उनकी मुलाकात जीन पियरे हैरिसन से हुई साल 1983 में उन्होंने हैरिसन से शादी कर ली,
1988 में यूनिवर्सिटी आफ कोलोराडो बोल्डर से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में पीएचडी की और उसी साल उन्होंने नासा के साथ काम करना शुरू कर दिया
साल 1991 में उन्हें अमेरिका की सिटीजनशिप मिल गई और फिर दिसंबर 1994 में उन्हें अंतरिक्ष यात्री के 15 वे समूह में शामिल किया गया,
कल्पना ने पहली उड़ान 19 नवंबर 1997 को अमेरिका की स्पेस सेंटर से भरी जिसमें कल्पना चावला सहित 6 क्रू मेंबर सवार थे,
15 दिन और 16 घंटे बिताने के बाद 5 दिसंबर 1997 को धरती पर सफलतापूर्वक वापस भी आ गई,
जिससे वो अंतरिक्ष में जाने वाली पहली भारतीय मूल की महिला बन गई,
पिछले मिशन की कामयाबी को देखते हुए नासा ने कल्पना चावला को अपने दूसरे स्पेस मिशन के लिए सन 2001 में फिर से सलेक्ट कर लिया, लेकिन इस स्पेस शटल में बार-बार आ रही खराबियों के कारण, लगभग 18 बार इसकी लॉन्च डेट को आगे बढ़या गया, जिसमें करीब 2 साल गुजर गए, और फिर वो दिन आया 16 जनवरी 2003 का जिस दिन कोलंबिया स्पेस शटल ने
फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से अपनी 28वी और आखरी उड़ान भरी,
इस मिशन के दौरान पूरे 15 दिन 22 घंटे 20 मिनट और 32 सकेंड तक स्पेस में रहने के बाद 1 फरवरी 2003 को जब ये सटल धरती के वायुमंडल की तरफ बढ़ रहा था, तो नाशा के वैज्ञानिकों के साथ साथ पूरी दुनिया के लोग उनके लौटने पर खुँसी से स्वागत करने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहे थे,
लेकिन ये खुशी का इंतजार कुछ ही क्षण में मातम में बदल गया,
क्योंकि धरती पर पहुंचने से सिर्फ 63 किलोमीटर दूरी पर स्पेस शटल ब्लास्ट होकर टुकड़ों में बिखर गया,
कुछ सालों तक तो ये किसी को मालूम ही नहीं चल सका था आखिर ये हादसा हुआ कैसे,
सारी दुनिया यही समझती रही कि कहीं ना कहीं क्रू मेंबर से ही कोई गलती हुई होगी, लेकिन जब नासा ने इस मामले में बारीकी से जांच की तो ऐसा सच निकल कर सामने आया जिसने सबको हैरान कर दिया, नासा के मुताबिक ये पूरा हादसा इंसुलेशन फॉर्म के कारण हुआ था,
तो शायद आप ये सोच रहे होंगे कि ये इंसुलेशन फॉर्म आखिर होता क्या है, तो दोस्तों सरल भाषा में जाने, तो इंसुलेशन फॉर्म को रॉकेट की टैंक पर लगाया जाता है ताकि बाहर की गर्मी उसके अंदर ना जा सके,
जब ये स्पेस शटल लॉन्च किया जा रहा था तब टैंक से जुड़ा इंसुलेशन फॉर्म का एक टुकड़ा टूटकर प्लेन के लेफ्ट बिंग से जाकर टकरा गया था, जिसके कारण स्पेस शटल के बिंग में लगभग 8 से 10 इंच का गहरा छेद हो गया था, और किसी ने ये सोचा भी नहीं होगा कि इंसुलेशन फॉर्म का ये छोटा सा टुकड़ा प्लेन के बिंग को इतना ज्यादा नुकसान पहुंचा देगी,
कि जब ये स्पेस सटल धरती पर वापस आएगा तब ये हवा के दबाव को झेल नहीं पाएगा,
जिसके कारण सारी हिट इसके अंदर चले जाएगी और ये भयानक हादसे का शिकार हो जाएगा, नासा के मुताबिक दुर्घटना का असली कारण ये इंसुलेशन फॉर्म ही था,
इस हादसे के 10 साल बाद एक खुलासा किया कि लॉन्चिंग के दौरान इस फॉर्म के टूटने वाली घटना को नासा की मैनेजमेंट टीम ने देख लिया था, और नासा इस बात को पक्के तौर पर समझ गया था कि कोलंबिया स्पेस शटल के सभी क्रू मेंबर धरती पर सुरक्षित नहीं लौटेंगे,
लेकिन फिर भी नासा ने इस बात को अपने सभी क्रु मेंबर से छुपाई और उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया,
हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि नासा ये अनुमान ही नहीं लगा सका, कि स्पेस शटल को कितना नुकसान हुआ है,
वहीं कुछ वैज्ञानिकों का ये भी अनुमान है कि यदि ये जानकारी स्पेस शटल में बैठे एस्ट्रोनॉट्स तक पहुंच भी जाती तो भी वे कुछ नहीं कर सकते थे,
इसके अलावा एक तर्क ये भी दिया जाता है कि नासा के वैज्ञानिक ये नहीं चाहते थे, कि मिशन पर गए क्रु मेंबर घबरा जाए और अपनी जिंदगी के कुछ आखिरी दिन ये सोच सोच कर जिए कि हम बहुत जल्द मरने वाले हैं
इसलिए सायद ऐसा कुछ सोचकर नासा ने ये मुश्किल भरा डिसीजन लिया हो,
वैसे आपको नहीं लगता है, कि नासा को ये जानकारी स्पेस शटल में बैठे एस्ट्रोनॉट्स को दे देनी चाहिए थी, ताकि वो अपने लिए एक आखिरी कोशिश कर पाते,
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